Saturday, March 22, 2014

मेरी नई शुरुवात

इस दोपहर के अकेलेपन मै ,शोर में  भीड़ में  अकेले मन 
के द्वार पर जब तुमने खटखटाया  

कुछ सकुचाई सी कुछ हिम्मत से 
मैंने अपने मन के द्वार तुम्हारे लिए खोले 
 तुम एक पहेली  के जैसे खड़े थे सामने 

बहोत से किस्से कहानियो और कुछ प्रश्नो  के साथ 
कभी तुम लगते अपने कभी पराये से
 
पहले घबरया मन ,सोचा लोटा दू तुमको 
और कर दू इस मन क द्वार को बंद 

लेकिन मन ने दी चुनौती कि है अगर हिम्मत तो
सामना कर इस नई  पहेली का ,इस नए मोड़ का 

मन मैं था और है  बहुत विशवास और वो ही रास्ता दिखाएगा और 
मेरा सफ़र युही चलता रहेगा